Thursday, September 21st, 2023

20000000000000000(ये संख्या 20 क्वाड्रिलियन या 20 करोड़ शंख या 20 लाख करोड़ अरब है) ये नंबर नहीं चींटियों की संख्या है:इंसानों से 25 लाख गुना ज्यादा चींटियां, दुनिया के लिए क्यों हैं जरूरी?

चींटियों की आबादी धरती पर इंसानों की आबादी से 25 लाख गुना ज्यादा है। ये खुलासा हाल ही में आई एक स्टडी में हुआ है। पहली बार किसी रिसर्च में चींटियों की आबादी की जानकारी मिली है।

489 स्टडीज के अध्ययन से मिली चींटियों की आबादी की जानकारी

ऑस्ट्रेलिया, जर्मनी और हांगकांग के रिसर्चर्स की एक टीम ने दुनियाभर के वैज्ञानिकों की 489 स्टडीज के आधार पर चीटियों की आबादी पता की है। ये स्टडी प्रोसेडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज जर्नल में छपी है। इसमें अंग्रेजी के साथ फ्रेंच, रशियन और चीनी भाषा मंडारिन में हुई स्टडीज का भी एनालिसिस किया गया।

इसके लिए रिसर्चर्स ने दुनिया के सभी महाद्वीपों में जमीन और पेड़ पर रहने वाली अलग-अलग चींटियों के डेटा कलेक्ट करने की कोशिश की। इसके बाद भी वे हर जगह का डेटा कलेक्ट नहीं कर पाए। रिसर्चर्स का कहना है कि अफ्रीका इसका उदाहरण है, जहां बहुत चींटियां पाई जाती हैं, लेकिन उनकी काफी कम स्टडी हुई है।

चींटियों की संख्या से जुड़ा ये नया आंकड़ा पुराने अनुमानों से 2 से 20 गुना ज्यादा है। इससे पहले माना जाता था कि कीटों की कुल संख्या का तकरीबन 1% चींटियां हैं। इस बार की स्टडी में केवल चींटियों की संख्या को आधार बनाया गया।

स्टडी में शामिल रिसर्चर्स ने हमारे इकोसिस्टम में चींटियों के योगदान की वजह से उन्हें इकोलॉजिकल इंजीनियर्स कहा है।

स्टडी में शामिल रिसर्चर्स ने हमारे इकोसिस्टम में चींटियों के योगदान की वजह से उन्हें इकोलॉजिकल इंजीनियर्स कहा है।

चींटियों का वजन 1.2 करोड़ टन, सभी जंगली स्तनधारियों और पक्षियों से भी ज्यादा

रिसर्च में पाया गया कि इंसानों का कुल बायोमास 6 करोड़ टन है। जबकि चींटियों का कुल बायोमास 1.2 करोड़ टन है। यानी चींटियों का वजन इंसानों के वजन के पांचवें भाग या करीब 20% के बराबर है। जबकि दुनिया के सभी जंगली स्तनधारियों का वजन 70 लाख टन और पक्षियों का वजन 20 लाख टन है।

बायोमास का मतलब होता है किसी खास एरिया में किसी जीव का कुल वजन या उसकी कुल मात्रा। बायोमास को आमतौर पर ड्राई वेट के रूप में मापा जाता है, क्योंकि वेट मास के रूप मापने पर शरीर में मौजूद पानी से वेट बदल जाता है। ड्राई वेट को मापने की यूनिट है टन कार्बन।

स्टडी में शामिल एक रिसर्चर सबाइन नूटेन ने कहा, ‘मैं हैरान थी कि चींटियों का वजन जंगली स्तनधारियों और पक्षियों को मिलाकर भी उससे ज्यादा था।’

पोलर रीजन को छोड़ पूरी दुनिया में पाई जाती हैं चींटियां

इस स्टडी के मुताबिक, चींटिया पोलर इलाकों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाई जाती हैं। पोलर इलाकों में सालभर बर्फ जमी रहती हैं और इंसानी आबादी न के बराबर होती है। इनमें नॉर्थ और साउथ पोल और अंटार्कटिका जैसे इलाके शामिल हैं।

स्टडी के अनुसार, ज्यादातर चींटिया दुनिया के सबसे गर्म और सबसे नम हिस्सों में रहती हैं। जंगल और सूखे इलाकों में शहरों की तुलना में ज्यादा चींटियां रहती हैं। वहीं धरती के ट्रॉपिकल जोन में चींटियों की आबादी सबसे घनी थी। धरती के मध्य में पाए जाने वाले इलाके ट्रॉपिकल जोन कहलाते हैं। यहां औसतन तापमान 20-30 डिग्री सेंटीग्रेड रहता है।

इस स्टडी में शामिल रहे यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया के स्कूल ऑफ बायोलॉजिकल साइंसेज के फॉरेस्ट फेलो मार्क वोंग ने कहा, ‘हमारे नतीजे दिखाते हैं कि ट्रॉपिकल इलाकों में चींटियां की संख्या सबसे ज्यादा है, इनमें वे इलाके शामिल हैं, जो इंसानी अव्यवस्था और पर्यावरण में बदलाव की वजह से सबसे ज्यादा दबाव झेल रहे हैं।’

दुनिया के लिए क्यों बेहद जरूरी हैं चींटिया?

स्टडी के मुताबिक, चींटियां प्रकृति का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे मिट्टी को हवा देती हैं, मिट्टी और बीजों को फैलाती हैं, आर्गेनिक मैटेरियल को तोड़ती हैं, अन्य जानवरों के लिए आवास बनाती हैं और फूड चेन का अहम हिस्सा बनती हैं। कई जीवों के साथ चींटियों का गहरा नाता है और कुछ जीव तो बिना चींटियों के जीवित ही नहीं बच पाएंगे।

कुछ पक्षी अपने शिकार को बाहर निकालने के लिए चींटियों पर भरोसा करते हैं। कई चींटियां शिकारी होती हैं, जो अन्य कीड़ों की आबादी को नियंत्रण में रखने में मदद करती हैं। हजारों पौधों की प्रजातियों और चींटियों के बीच एक म्यूचुअल रिश्ता होता है, जिसमें पेड़ सुरक्षा या उनके बीजों को फैलाने के बदले चींटियों को खाना या घर उपलब्ध कराते हैं।

इस स्टडी के अनुसार अनाज उत्पादन के लिए कीटों को मारने में चींटियां कीटनाशकों से भी ज्यादा प्रभावशाली हो सकती हैं। ये तस्वीर एक्टाटोमा प्रजाति की चींटी की है, जो कीड़ों को मार देती है। (सोर्स: द गार्डियन)

इस स्टडी के अनुसार अनाज उत्पादन के लिए कीटों को मारने में चींटियां कीटनाशकों से भी ज्यादा प्रभावशाली हो सकती हैं। ये तस्वीर एक्टाटोमा प्रजाति की चींटी की है, जो कीड़ों को मार देती है। (सोर्स: द गार्डियन)

इस स्टडी के को-राइटर जर्मनी के वुर्जबर्ग यूनिवर्सिटी और हांगकांग यूनिवर्सिटी के इंसेक्ट्स एक्सपर्ट पैट्रिक शुल्थिस ने कहा कि चींटिया धरती के लगभग हर इकोसिस्टम में अहम भूमिका निभाती हैं। शुल्थिस ने कहा, ‘चींटियां हर साल प्रति हेक्टेयर करीब 13000 किलो मिट्टी खिसकाती हैं। पोषक चक्र बनाए रखने में उनका बहुत प्रभाव होता है और पौधों के बीजों के डिस्ट्रिब्यूशन में भी निर्णायक भूमिका निभाती हैं।’

दरअसल इकोसिस्टम या पारिस्थितिक तंत्र उसमें शामिल सभी जीवों और भौतिक वातावरण को मिलाकर बनता है। यानी किसी खास पर्यावरण में मौजूद हर एक चीज को मिलाकर इकोसिस्टम बनता है।

हार्वर्ड फोरेस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, चींटिया हमारे लिए इसलिए जरूरी हैं, क्योंकि वे मिट्टी को हवा देने का जरिया हैं, जिससे पानी और ऑक्सीजन पौधों की जड़ों तक पहुंचता है। वे मिट्टी के नीचे बीजों के पौष्टिक लाइसोसोम को खा लेती हैं और बीजों को एक जगह से दूसरी जगह ले जाती हैं। यानी चींटियां बीजों से पौधों के निकलने के प्रोसेस में मददगार होती हैं।

इकोलॉजिकल बैलेंस बनाए रखने के लिए चींटियां कई प्रकार के कार्बनिक मैटेरियल्स को खाती हैं, जिससे कई जीवों को भोजन मिलता है।

फिजी में वैज्ञानिकों ने चींटी की ऐसी प्रजाति खोजी है, जो कॉफी की फसल को रोपती, उसे फर्टिलाइज करती और उसकी सुरक्षा करती है। (सोर्स: द गार्डियन)

फिजी में वैज्ञानिकों ने चींटी की ऐसी प्रजाति खोजी है, जो कॉफी की फसल को रोपती, उसे फर्टिलाइज करती और उसकी सुरक्षा करती है। (सोर्स: द गार्डियन)

स्टडी से क्लाइमेट चेंज के चींटियों पर असर का पता चलेगा

चींटियां कीटों की श्रेणी में आती हैं। कीटों की जनसंख्या को लेकर आई पिछली कुछ स्टडीज में चिंताजनक बातें सामने आई थीं। 2021 में पब्लिश हुई कई स्टडीज में पाया गया कि जलवायु परिवर्तन, बीमारियों, प्रदूषण, खेती में परिवर्तन और कीटनाशकों और जड़ी-बूटियों के इस्तेमाल से हर साल पृथ्वी के लगभग 1% से 2% कीट मर जाते हैं।

अप्रैल 2020 में आई एक और स्टडी में पाया गया था कि पिछले 30 सालों में धरती पर रहने वाले एक चौथाई कीट खत्म हो गए हैं।

स्टडी में शामिल पैट्रिक शुल्थिस ने कहा कि इंसान अक्सर चींटियों से चिढ़ते हैं, लेकिन ऐसे कई कारण है, जिनसे उन्हें चींटियों का शुक्रगुजार होना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘उस ऑर्गेनिक मैटेरियल की मात्रा के बारे में सोचिए जो हर साल 20 करोड़ शंख चींटियां ले जाती हैं, हटाती हैं, रिसाइकिल करती हैं और खाती हैं। बायोलॉजिकल प्रोसेस के लिए चींटिया इतनी अहम हैं कि उन्हें इकोसिस्टम इंजीनियर्स कहा जाता है।’

ऐंट साइंटिस्ट रहे इओ विल्सन ने एक बार चींटियों जैसे कीटों को लेकर कहा था, ‘ये छोटी चीजें दुनिया चलाती हैं।’

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